दुआ ए क़ुनूत वित्र की नमाज़ में पढ़ी जाने वाली दुआ है। आपको ये जान कर हैरानी होगी के मुसलमानों की अक्सरियत को सही दुआ ए क़ुनूत जिसे वित्र की नमाज़ में पढ़ना चाहिए उसका इल्म ही नहीं है।
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क्या वित्र की नमाज़ में दुआ ए क़ुनूत का पढ़ना वाजिब है?
नमाज़े वित्र की तकमील के लिए दुआ ए क़ुनूत का पढ़ना वाजिब नहीं है। और जो कोई भी दुआ ए क़ुनूत पढ़े बग़ैर वित्र की नमाज़ अदा करे, इसकी कुबुलियत के बारे में उसे फ़िक्रमंद होने की ज़रूरत नहीं है, क्यू के दुआ ए क़ुनूत तो बस वित्र में दुआ करने का एक मौका है जो अल्लाह ने हमें दिया है।
और जब एक बार आप दुआ ए क़ुनूत का तर्जुमा पढ़ लेंगे तो उसके बाद आप वित्र की नमाज़ में दुआ ए क़ुनूत पढ़ कर दुनिया और आख़िरत की भलाई अल्लाह से मांगने का ये मौका कभी नहीं छोड़ेंगे।
दुआ ए क़ुनूत और क़ुनूत ए नाज़िला में क्या फर्क है?
मुसलमानों की अक्सरियत वित्र की नमाज़ में जिस दुआ को दुआ ए क़ुनूत समझ कर पढ़ रही होती है वो असल में दुआ ए क़ुनूत नहीं बलके क़ुनूत ए नाज़िला (अल्लाहुम्मा इन्नी नस्ताइनुका) है।
कुनूत ए नाज़िला की दुआ नज्द के काफिरों पर उनके द्वारा किए गए बेरहमी और क़त्लो गारत की वजह से उन्हें बद्दुआ देने के लिए पढ़ी गई थी, हुवा यूँ था के अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने 70 क़ारियो की जमात को नज्द के कुछ कबाइल जिनके साथ मुआहिदा था उन्हें क़ुरान सीखाने के लिए भेजा, लेकिन उन्होंने धोका किया और उन 70 सहाबा को क़त्ल कर दिया, इसलिए हुज़ूर (ﷺ) बोहत ग़मग़ीन हुए और उन्होंने एक महीने तक उन क़बाइल के लिए क़ुनूत ए नाज़िलाह पढ़ी और बद्दुआ की.
क़ुनूत ए नाज़िला (अल्लाहुम्मा इन्नी नस्ताइनुका) को या तो वित्र में पढ़ा जा सकता है या फ़र्ज़ नमाज़ की आखिरी रकअत में रुकू के बाद, याद रखें कि यह क़ुनूत ए नाज़िलह है, दुआ क़ुनूत नहीं।
वित्र की नमाज़ में पढ़ी जाने वाली दुआ ए क़ुनूत कौन सी है?
दुआ ए क़ुनूत वही है जिसे अल्लाह के नबी (ﷺ) ने क़ुनूत ए वित्र के तौर पर तालीम फरमायी है, जो निचे दी गई हदीस में आप पढ़ सकती है।
हदीस:
हसन रदी. फरमाते हैं के अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने मुझे कुछ कलीमात वित्र में क़ुनूत में पढ़ने के लिए सिखाए वो ये है:
اللَّهُمَّ اهْدِنِي فِيمَنْ هَدَيْتَ وَعَافِنِي فِيمَنْ عَافَيْتَ وَتَوَلَّنِي فِيمَنْ تَوَلَّيْتَ وَبَارِكْ لِي فِيمَا أَعْطَيْتَ وَقِنِي شَرَّ مَا قَضَيْتَ إِنَّكَ تَقْضِي وَلاَ يُقْضَى عَلَيْكَ وَإِنَّهُ لاَ يَذِلُّ مَنْ وَالَيْتَ تَبَارَكْتَ رَبَّنَا وَتَعَالَيْتَ
अल्लाहुम्मा इहदीनी फी मन हदैत व ‘आफीनी फी मन ‘आफैत व तवल्लनी फी मन तवल्लैत व बारिक ली फी मा आ’अतैत, व क़िनी शर्रा मा क़दैत, फ़इन्नाका तकदी वला युक़दा ‘अलैक, व इन्नाहु ला यदिल्लुमन वालैत, तबारक्ता रब्बना व त’आलैत
तर्जुमा:
या अल्लाह, मुझे हिदायत देकर उनमें शामिल कर दे जिन्हे तूने हिदायत दी। और मुझे आफियत अता कर के उनमें शामिल कर दे जिन्हे तूने आफियत अता की। और मुझे अपना दोस्त बना ले और अपने दोस्तोमें मुझे शामिल कर ले। और जो कुछ तूने दिया है उसमें मुझे बरकत दे, और मुझे उस बुराइ से बचा जिसके होने का तूने फैसला किया है। बेशक तू ही हुक्म देता है और कोई तुझ पर हुक्म नहीं कर सकता, और बेशक वो कभी भी ज़लील नहीं होता जिससे तूने दोस्ती की हो। तू मुबारक है ऐ हमारे रब, और बुलंद है।
रेफरेन्स: सुन्नन अन-नसाई 1745
दुआ ए क़ुनूत के बदले क्या पढ़े?
दुआ ए क़ुनूत हमें ज़रूर सीखनी चाहिए। दुनिया में बहुत कम लोग हैं जिन्हे दुआ ए क़ुनूत याद है। तो हमें दुआ ए क़ुनूत को ज़रूर सीखना सिखाना चाहिए, जिसके वित्र की नमाज में पढ़ने की अल्लाह के नबी (ﷺ) ने तालीम दी है।
अब सवाल ये उठता है कि अगर हमें दुआ ए क़ुनूत नहीं आती तो हम क्या पढ़ें?
तो इसका सीधा सा जवाब है कि दुआ ए क़ुनूत एक दुआ है, और अगर किसी को ये दुआ नहीं आती तो उसे चाहिए की वो कोई और दुआ पढ़े। क्यू के दुआ के बदले दुआ ही पढी जायेगी। जब तक आपको दुआ ए क़ुनूत नहीं याद हो जाती, आप दुआ ए क़ुनूत के बदले ये दुआ पढ़ सकते हैं:
رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ
रब्बना आतिना फ़िद-दुनिया हसनाह व फ़ि ‘ल-आखिरति हसनाह व क़िना `अधाबन-नार
ये दुआ सही मुस्लिम में मौजुद है, निचे इसकी हदीस दी गई है, आप इसकी लिंक पर क्लिक करके तस्दीक भी कर सकते हैं।
हदीस:
अनस रदी. से रिवायत है के अल्लाह के नबी (ﷺ) इन अल्फ़ाज़ो के साथ दुआ माँगते थे:
رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ
“ऐ हमारे रब, हमें इस दुनिया की भलाई अता फरमा, और हमें आखिरत की भलाई अता फरमा, और आग के अज़ाब से हमारी हिफाज़त फरमा।”
रेफरेन्स: सहिह मुस्लिम 2690बी
यहाँ पर हमारे कई भाइयों को ये ग़लतफ़हमी है के अगर उन्हें दुआ ए क़ुनूत नहीं आती तो उसके बदले वो सूरह इखलास पढ़ सकते हैं, जब की ऐसा नहीं है। भाईयो, दुआ ए क़ुनूत एक दुआ है और जब तक आपको ये याद नहीं हो जाती, आपको इसके बदले कोई और दुआ ही पढ़नी चाहिए और इसलिए हमारे नबी (ﷺ) ने जो दुआ सिखाई वो ऊपर दी गई है, आप उसे ही पढ़े।
दुआ ए क़ुनूत के बाद क्या पढ़े?
फदलुस-सलात अल-अन-नबी नाम की किताब जो क़ाज़ी इस्माइल मालिकी अल मुतवफ्फा 287 हिजरी, ने लिखी है, उसमें आपको सही सनद के साथ रिवायत मिलेगी के सहाबा रदी, और ताबेईन इकराम दुआ ए क़ुनूत पढ़ने के बाद दुरुद शरीफ़ भी पढ़ा करते थे।
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ
आप को दुरुद शरीफ के तौर पर पूरा दरूद ए इब्राहिम पढ़ने की जरूरत नहीं, अगर आप पढ़े तो बहुत बेहतर है, लेकिन आप सिर्फ “अल्लाहुम्मा सल्ली ‘अला मुहम्मद व ‘अला आली मुहम्मद” इतना दुरुद शरीफ भी पढ़ सकते है. ये भी एक मुक़म्मल दुरुद है जैसा कि आप आगे दी गई हदीस में पढ़ कर मालूम कर सकते है।
हदीस:
ज़ैद बिन ख़ारिजा कहते हैं कि मैंने अल्लाह के नबी (ﷺ) से पूछा और उन्होंने फरमाया:” मुझ पर सलावात भेजो और दुआओं को कसरत से किया करो, और कहो अल्लाहुम्मा सल्ली ‘अला मुहम्मद व ‘अला आली मुहम्मद।
रेफरेन्स: सुनन अन-नसाई 1292
दुआ ए क़ुनूत को वित्र की नमाज़ में रुकू से पहले पढ़ना है या रुकू के बाद?
दुआ ए क़ुनूत को वित्र की आखिरी रकात में रुकू से पहले ही पढ़ना चाहिए। आगे आप सही बुखारी की हदीस पढ़ सकते है जिसमें आपको ये चीज़ और वाज़ेह हो जाएगी।
हदीस:
हज़रत आसिम रिवायत करते हैं के मैने अनस बिन मलिक रदी. से क़ुनूत के बारे में पूछा।
अनस रदी. ने फरमाया के दुआ ए क़ुनूत पढ़ी जाती थी।
मैंने पूछा के रुकु से पहले या उसके बाद?
आपने फरमाया के रुकू से पहले।
आसिम ने कहा के आप ही के हवाले से फ़ला शख़्स ने ख़बर दी है के आपने रुकु के बाद फरमाया था।
उसका जवाब हज़रत अनस रदी. ने ये दिया के ऐसा कहने वाले ने ग़लत समझा। अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने सिर्फ एक महीना क़ुनूत को रुकु के बाद पढ़ा है। और फरमाया के रसूल (ﷺ) ने 70 क़ारियो के क़रीब मुश्रिको की एक क़ौम की तरफ उनको तालीम देने के लिए भेजे थे। ये लोग उन लोगो से अलग थे जिन पर आप (ﷺ) ने बद्दुआ की थी और इनके और हुजूर (ﷺ) के बीच एक मुआहिदा हुआ था। लेकिन इन मुशरिको ने अहद शक्नी की तो हुज़ूर (ﷺ) एक महीने तक क़ुनूत पढ़ते रहे और इन पर बद्दुआ करते रहे।
रेफरेन्स: सहिह अल-बुखारी 1002
वित्र की नमाज़ का तरीका
वित्र की नमाज़ जिसे रात की नमाज़ भी कहते है, इसे आम तौर पर 3 रकात में पढ़ा जाता हैं। इन 3 रकात को मगरिब की 3 रकात से मुख्तलिफ तरीके से पढ़ना होता है, जो आगे आने वाली हदीस शरीफ से साबित हो जाएगा।
वित्र की नमाज़ पढ़ने के लिए 2 तरीके है:
2 रकात नमाज़ पढ़े और फिर अलग से 1 रकात पढ़ कर 3 रकात मुकम्मल करे। या फिर
एक सलाम से 3 रकात नमाज़ पढ़े लेकिन उसमें दूसरी रकअत में तशह्हुद में ना बैठे। दूसरी रकात के दूसरे सजदे के बाद तशह्हुद में बैठे बग़ैर आप सीधा तीसरी रकात के लिए खड़े हो जाएं और फिर नमाज़ को मुकम्मल करे।
हदीस:
अब्दुल्ला इब्न उमर रदी. रिवायत करते हैं के अल्लाह के नबी (ﷺ) ने इरशाद फरमाया: “रात की नमाज़ दो रकात है, और जब तू ख़तम करना चाहे तो एक रकात वित्र पढ़ ले जो सारी नमाज़ को ताक बना देगी।
क़ासिम बिन मुहम्मद ने बयान किया के हमने बोहत सो को तीन रकात वित्र पढ़ते भी पाया है, और तीन या एक रकात वित्र सब जायज़ है, और मुझे उम्मीद है कि किसी में क़बाहत न होगी।”
रेफरेन्स: सहिह अल-बुखारी 993
नाफ़े’ से रिवायत है के हज़रत अब्दुल्ला बिन उमर रदी. वित्र की जब तीन रकात पढ़ते, तो दो रकात पढ़ कर सलाम फेरते, यहां तक के ज़रुरत से बात भी करते हैं।
रेफरेन्स: सहिह अल-बुखारी 991
वित्र की नमाज़ में दुआ ए क़ुनूत को कब पढ़ना चाहिए?
जब आप 3 रकात वित्र पढ़ रहे हों और तीसरी रकात के लिए खड़े हो जाएं, या फिर आप 1 रकात वित्र पढ़ रहे हों, दोनों ही सूरतों में आप नीचे बताएं गए किसी भी एक तरीके पर अमल कर सकते हैं।
सूरह फातिहा के बाद सूरत मिलाने के साथ ही दुआ ए क़ुनूत पढ़ ले।
या फिर, सूरह फातिहा के बाद सूरत मिलाने के बाद अल्लाहुअकबर कहें और हाथ बुलंद करे और दोबारा से हाथ बांध ले और दुआ ए क़ुनूत पढ़े।
दुआ ए क़ुनूत पढ़ने के पहले रफ़ा दैन करना हज़रत उमर रदी. से साबित है. (मुसन्नफ़ इब्न अबी शयबा: 7021-25)
क्या दुआ ए क़ुनूत पढ़ते वक्त हाथ उठाना चाहिए?
जैसे दुआ करने के लिए हाथ उठाते है, दुआ ए क़ुनूत पढ़ते वक्त हमें उस तरह हाथ नहीं उठाने चाहिए, क्यू के हुज़ूरे अकदस (ﷺ) दुआ ए क़ुनूत पढ़ते वक्त हाथ नहीं उठाते थे, लेकिन जब क़ुनूत ए नाज़िलह पढ़ते तब हाथ उठाते थे। ये बात नीचे दी गई हदीस से और वाज़ेह हो जाएगी।
हदीस:
अब्दुल्ला इब्न अब्बास रिवायत करते हैं कि अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने ज़ोहर, असर, मगरिब, ईशा और फजर में एक महीने तक मुसलसल क़ुनूत पढ़ी। जब आखिरी रकात में समी अल्लाहु लिमन हमीदा कहते तो आप (ﷺ) बनी सुलैम के कुछ क़बाइल रि’ल, दख़्वान और उसय्या के लिए बद-दुआ करते थे और जो लोग आप के पीछे होते थे वो आमीन कहते थे।
रेफरेन्स: सुनन अबी दाऊद 1443
जुज़ अल रफ़ा उल यदैन एक किताब है जो इमाम बुखारी ने लिखी है, ये वही इमाम बुखारी है जिन्होंने सहीह बुखारी लिखी है जिसे पूरी दुन्या के मुस्लमान जानते और मानते हैं,
जुज़ अल रफ़ा उल यदैन में एक हदीस है, उस हदीस में, इस बात का ज़िक्र किया गया है कि हज़रत ‘उमर रज़ी,जब नमाज़ पढ़ा रहे थे तब उन्होंने रुकू करने के बाद हाथ उठाये थे और क़ुनूत ए नाज़िला पढ़ी थी, हत्ता के उनकी हथेलिया दिखाई दी और उनके बाज़ू नज़र आने लगे
इस किताब का हिंदी तर्जुमा इंटरनेट पर आसानी से नहीं मिलता है, लेकिन यहां अरबी/उर्दू नुस्खे का लिंक दिया गया है।आप चाहे तो लिंक पर क्लिक कर के खुद पढ़ सकते है।
बरकतो को शेयर करें: सुन्नतअज़कार.कॉम को अपने दोस्त, अहबाब के साथ शेयर करें
हम उम्मीद करते हैं कि दुआ ए क़ुनूत के ऐतबार से हमने आपके सारे सवालो के जवाब दे दिए हैं। आप खुद भी इस मुबारक दुआ को सीखें जिसे पढ़ने की खुद हुज़ूर ए अकदस (ﷺ) ने तालीम फरमायी है, और आप अपने दोस्त अहबाब, अज़ीज़ और जाननेवालो तक भी इसे पहुंचाए ताके ये आपके लिए सवाब ए जारिया का ज़रिया बने।
ऐसा करने में आपको बिल्कुल भी घबराहट महसूस करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि सुन्नतअज़कार.कॉम पर हमारा बस एक ही इरादा है के हम आपको अहतियात के साथ परख कर गलतियों से पाक इस्लामिक मवाद पहुंचा सके, ताके आपको वो हिदायत और इल्म मिले जिसकी आपको तलाश है .
अब आप इस अज़ीम मकसद का हिस्सा बन सकते हैं। इस पोस्ट को अपने दोस्त, खानदान और जाननेवालों के साथ शेयर करें। ऐसा करने से आप ना सिर्फ मुस्तनद इस्लामी मवाद हासिल करने में उनकी मदद करेंगे बलके अल्लाह से आप कभी खत्म ना होनेवाला इनाम भी हासिल करेंगे।
इस सही और गलत मालुमात से उमड़ रहे इंटरनेट के समंदर में, आप इस्लाम की मुस्तनद, और सही मालूमात इसे खोजने वालो तक पहुंचाने का ज़रिया बने। सुन्नतअज़कर.कॉम के बारे में सबको बताएं कि सुन्नतअज़कार.कॉम पर सदाकत है, इस्लाम है।
अल्लाह करे के आपके फैलाने से इस्लाम का इल्म और बरकते दुनिया के कोने कोने में फैले, और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त आपको बेशुमार अज्र अता फरमाये।